वास्तवमे देखल जाय तँ आजादीके बादो मिथिलाक स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण अछि। एखनो हजार-दुहजार लोक एक सङ्ग आबि दोसरक जमीन कब्जा कय रहल छथि। लाल झण्डा लगा अपन अधिकारके दाबी ठोकि रहल छथि।
जमीन सार्वजनिक हुए अथवा व्यक्तिविशेषक जोर-जबरदस्ती सँ कब्जा उचित नहि मानल जा सकैछ। आब ओ जमाना नहि छै जे लोक जमीन नहि बेचय छै। काज करू, पाई जमा करू, जमीन कीनू, घर बनाउ। एना लाठी बले दोसरके जमीन अथवा सार्वजनिक जमीन कब्जा करब उचित नहि। फेर अहाँमे आओर रोहंगियामे की अन्तर?
बिहार सरकार कर तँ चाण्डाल जकाँ असुलैत अछि तखनि भूमिहीन मैथिल लेल भूमिके व्यवस्था किएक नहि करैत अछि?
ठीक सँ देखल जाय तँ जनिकर जमीन कब्जा कयल जायत अछि अथवा चेष्टा कयल जायत अछि सेहो दुःखी, जाहि मैथिलके घर बनेबाक लेल जमीन नहि छै सेहो दुःखी।
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